
बरसाना में हुई लठामार होली, झूम उठे नर-नारी
विवेक दत्त मथुरिया
बरसाना (ब्रज ब्रेकिंग न्यूज)। छैल-छबीली हुरियारिनों के लट्ठ प्रहार और मस्ती में डूबे हुरियारों द्वारा ढालों की ओट में खुद को बचाने की लीला जब रंग-रंगीले बरसाना में हुई तो मानो द्वापर युग सजीव हो उठा।लठामार होली की लीला की जीवंतता का आलम ऐसा था कि इसे देखने आंखें लालायित थीं और दिल इस रंग से सराबोर होने को मचल उठते थे। आनंद का समां ऐसा बंधा कि अस्त होने को जाता सूर्य भी रुककर इस लीला को देख रहा था।

शनिवार को शाम पांच बजे जब कस्बे की रंगीली गली से लठामार होली शुरू हुई तो दर्शक आनंद के अतिरेक से झूम उठे। राधारानी और नंदलाला के जयकारों से राधानगरी गुंजायमान हो उठी। मन्दिर से उतरकर आये नन्दगाँव के हुरियारों और बरसाना की हुरियारिनों के मध्य हल्की-फुल्की नोकझोंक के साथ ही लठामार होली की शुरूआत हुई। ‘फ़ाग खेलन बरसाने आये हैं नटवर नन्दकिशोर’ के गायन के साथ ही होली का माहौल बन उठता है ।इस होली के बारे में ग्रंथों में जिक्र है कि बरसाना की होली देखने के लिए देवगण भी आते हैं। लठामार होली जब तक होती रही,सूरज अपनी जगह पर टिके रहे थे। पौराणिक तथ्य कुछ भी रहे हों, मगर होली देखने को आसमां में सूरज और चंद्रमा की तनातनी आज शनिवार को भी देखी गई।

चंद्रमा तो होली का आनंद उठाने के लिए सूरज के सामने ही आसमां में आ गए। बरसाने में होली पर ऐसा रंग बरसता है जिसमें सराबोर होने के लिए सांसारिक दुनिया ही नहीं, तीनों लोक भी उतावले रहते हैं। यहां की कुंज गलियां का आंनद स्वर्ग और अपवर्ग के सुख को फीका करता मालूम दे रहा है । हास-परिहास के साथ ही जब हुरियारिनों के प्रेम में पगे लठ हुरियारों पर बरसते हैं। ब्रजधरा पर मानो सुखद अनुभूति की हिलौरें उफनने लगती हैं । बरसाना की धरा पर तडातड लाठियां बरस-गरज रही थीं । बरसाना में होली के लिए शनिवार सुबह से सूरज की तेज किरणें उल्लास से सराबोर थीं। दोपहर में जैसे ही नंदगांव से हुरियारों के आने की खबर मिली, सूरज की किरणों का तेज धीरे-धीरे कम होता गया। राधारानी मंदिर से पूजा करके रंगीली गली में उतरते हुरियारों की शरारत के साथ होली का समां शबाब की ओर बढने लगा। लठामार होली का जुनून, उल्लास चरम की ओर बढ रहा था।

कस्बे की हर एक गली श्रद्धालुओं के आवागमन की चहल पहल की गवाह बनी। रगीली गली में तो पैर रखने को भी जगह नहीं मिली। बालक, युवा और वृद्ध सभी का जोश देखते ही बन रहा था।। मंदिर में लोगों ने राधा रानी के चरणों में गुलाल भेंट किया। हुरियारिनें सुबह से ही होली की तैयारियों में जुटी हैं। हुरियारिनों का उत्साह देखते ही बन रहा है। आखिर साल भर जिस दिन का इंतजार रहता है वो आ पहुंचा है। राधा रानी की लीलाओं में सहभागिता करने का मौका जो मिला है। खुद के भाग्य सराहती हुरियारिनें अपनी पंरपरागत पोशाक लंहगा चूनरी को पहन कर तैयार हो रही हैं। कान्हा के सखा होली खेलने आते ही होंगे।

दोपहर करीब दो बजे नंदगांव से हुरियारों के टोल के टोल आने शुरु हो गए। हुरियारों की जोश और उमंग देखते ही बन रही है। धोती और बगलबंदी पहने हुरियारे कंधे पर ढाल रखे हुए हैं। ससुराल आने के चाव में ज्यादातर हुरियारे अपने मुखिया जी के नेतृत्व में पैदल ही ढाई कोस चले आए हैं। नंद भवन से कान्हा की प्रतीक ध्वजा के पीछे पीछे हुरियारे झूमते गाते चले आ रहे है। मुख पर पसीना तो है लेकिन थकान नहीं है। बरसाना में पहुंचते ही प्रिया कुंड पर सब इकठ्ठे हो गए हैं। बरसाना के गोस्वामी समाज के मुखिया के नेतृत्व में हजारों बरसानावासी उनके स्वागत को जा पहुंचे हैं। भांग की ठंडाई में केवडा, गुलाबजल ओर मेवा घोल कर हुरियारों को पिलाई जा रही है। जो कभी भांग नहीं पीता वो हुरियारा भी आज भांग पिये बिना रह नहीं पाता। यहा पर हुरियारों ने अपने सिरों पर पाग बांधी हैं।

प्रिया कुंड के घाटों पर सैकडों हुरियारे एक दूसरे के पाग बांध रहे हैं। जो छोटे बच्चे पहली बार होली खेलने आए हैं उनके पिता या दादा उनकी पाग बांध रहे है। ऐसा लग रहा है कि हुरियारा बनने की पंरपरा का अगली पीढी को उत्तराधिकार दिया जा रहा है। प्रिया कुंड पर पाग बांधने के बाद हुरियारे लाडिली जी मंदिर की ओर चल दिए है। कान्हा की प्रतीक ध्वजा को मंदिर में किशोरी जी के पास रख दिया जाता है। जो इस बात का प्रतीक है कि नटवर नंद किशोर फाग खेलने के लिए बरसाना आ चुके हैं। मंदिर में दोनों गांवों के गोस्वामियों के मध्य संयुक्त समाज गायन किया गया। समाज गायन में दोनों पक्ष एक दूसरे पर प्रेम भरे कटाक्ष करने लगे। समाज गायन के बाद हुरियारे मंदिर से उतर कर रंगीली गली में आ पहुंचे। रंगीली गली में हुरियारिनें अपने द्वारों पर टोल बना कर खडी हुई है।

हुरियारों ने उनको देखकर रसिया और पदों का गायन शुरु कर दिया। जिसके बाद हुरियारिनें लाठियां लेकर हुरियारों पर पिल पडी। हुरियारों का बच के निकलना बडा मुश्किल हो गया। हुरियारिनों के लाठी प्रहारों को हुरियारों ने बडी कुशलता से अपनी ढालों पर झेलना शुरु कर दिया। एक ओर हुरियारिने पूरे जोश से लाठियां बरसा रही थी। वहीं हुरियारे किसी कुशल योद्धा की तरह सिर पर ढाल का आवरण रखे उछल उछल कर खुद को बचा रहे थे। इस आनंदपूर्ण दृश्य को देखने के लिए लाखों श्रद्धालु उमडे ।
