डॉ. अशोक बंसल (वरिष्ठ पत्रकार और लेखक)
यदि आप सिनेमा, नाटक, रंगमंच से जुड़ी कथाओं में दिलचस्पी लेते हैं तो मेरे इस किस्से का भरपूर आनंद लेंगे। मथुरा के लोगों को नहीं मालूम कि एक जमाने में सम्पूर्ण उत्तर भारत में नौटंकी के मंच पर पांच दशक तक धूम मचाने वाली सुन्दर, शालीन, प्रतिभाशाली, विनम्र व अदभुत कलाकार मथुरा में निवास कर रही हैं। उनकी आयु 86 वर्ष क्यों न हो, वे आज भी इस लुप्त हो चुकी कला को पुनर्जीवित होने के सपने में खोई -खोई रहती हैं।
पीलीभीत जिले के बीसलपुर शहर में सन 1939 में जन्मी कलाकार कमलेश लता को लाखों लोगों से मान-सम्मान और शोहरत खूब मिली लेकिन उन्होंने सदैव सरकारी तमगों की चाहत से अपने आप को दूर रखा। जबकि वे ‘पदमश्री’ जैसी उपाधि से विभूषित होने की हकदार हैं।
कहते हैं कि नौटंकी की शुरुआत सबसे पहले उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में हुई। वैसे अकबर के नवरत्न अबुल फजल के ‘आईने अकबरी’ में नौटंकी का जिक्र मिलता है। 1910 के दशक तक, कानपुर और लखनऊ नौटंकी के लिए महत्वपूर्ण केंद्र बन गए थे और प्रत्येक शहर ने नौटंकी की एक विशिष्ट शैली विकसित की थी। नौटंकी ने शुरू से ही किंवदंतियों, संस्कृत और फारसी रोमांस और पौराणिक कथाओं सहित साहित्य और परंपरा को विस्तृत रूप से मंच पर प्रदर्शित किया और इसे सबसे भावनात्मक तरीके से जनमानस तक पहुँचाया।
सबसे लोकप्रिय नौटंकी राजा हरिश्चंद्र, लैला मजनू, शिरीन फरहाद, श्रवण कुमार, हीर रांझा आदि रहीं । जबकि पृथ्वीराज चौहान, अमर सिंह राठौर और रानी दुर्गावती जैसे ऐतिहासिक पात्रों पर आधारित नौटंकियां भी काफी लोकप्रिय रहीं। कह सकते हैं, उत्तर भारत में बॉलीवुड से पहले ‘नौटंकी’ ही मनोरंजन का बड़ा माध्यम था
नौटंकी ने मनोरंजन के मुख्य स्रोत के रूप में कार्य किया, साथ ही अपने किस्सों और कहानियों के भीतर नैतिक, सामाजिक और राजनीतिक मूल्यों को स्थापित किया। उत्तर भारत में, नौटंकी ने राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान एक सुधारवादी भूमिका निभाई। देशभक्ति और पराक्रम की कथाओं वाले नाटकों का अभिनय करके नौटंकी कला ने राष्ट्रीय आंदोलन में एक अभूतपूर्व योगदान दिया।
नौटंकी का असर लोगों पर ऐसा था कि मंच पर जब लैला मजनू की प्रेमकहानी का मंचन होता था तो दर्शकों में चीख-पुकार मच जाती थी। ऐसे हर पल में अभिनेता और दर्शक एक हो जाते थे और बीच की अंतर की दीवार टूट जाती थी। कलाकार कमलेश लता के अभिनय की गहराई का यही आलम था।
कलाकार कमलेश लता अपने जीवन की कुछ घटनाओं का स्मरण करती हैं, वे ”हरीश चंद्र तारामती” में तारामती का अभिनय करती तो अपने किरदार में इतना डूब जातीं, मुक्त कंठ से डायलॉग बोलती तो सामने बैठे दर्शकों की आँखों से आंसू छलकने लगते। कमलेश लता जी आज भी नौटंकी ”अमर सिंह राठौर ” का स्मरण कर रोमांचित हो उठती हैं, वे कहती हैं, ”अमर सिंह राठौर” नौटंकी सैकड़ों बार गाँव के स्कूलों और मेलों-तमाशों में खेली गई। मैं अमर सिंह की पत्नी हाड़ा रानी बनती थी। इस खेल (नौटंकी) की कहानी में सलावत खां बजीर धोखे से अमर सिंह का गला काटता है। रानी हाड़ा दहाड़ मार-मार कर विलाप करती है। ”रानी बनी मैं मंच पर अपने सर को, शरीर को जमीन पर पटकती, दोहा, चौबाला, बहरतबीन, दौड़ा (नौटंकी में काव्यात्मक भाषा में लिखे डायलॉग के प्रकार) में विलाप करती तो दर्शक भाव विह्ळ हो जाते। दर्शकों से मिला यह प्यार मेरे जीवन का का सर्वोत्तम उपहार रहा।”
कलाकार कमलेश लता ने 14 वर्ष की आयु में नौटंकी की देहरी पर पहला कदम रखा और फिर जीवन भर इससे मुख न मोड़ा। सत्तर के दशक में मथुरा में आई तो नौटंकी मंडी के साथ लेकिन इसके बाद वे ब्रज की होकर रह गईं। ”नौटंकी शैली में गायन प्रमुख था, अभिनय पर जोर न था। मुझे दोनों में सामंजस्य बैठना उचित लगा। तब मैंने ‘कमलेश कला मंच ‘ के नाम से अपना अलग ग्रुप बनाया। और कानपुर शैली के अभिनय और हाथरस शैली के गायन को नौटंकी में डाला। दर्शकों ने इसे पसंद किया। ”
कलाकार तकदीर में यकीन करते हैं, कलाकार कमलेश लता की तकदीर में होता तो वे बड़े परदे पर चली जातीं। एक बार मौका मिला। बॉलीबुड के एक निर्माता ने उन्हें नौटंकी में अभिनय करते देखा तो अपनी फिल्म ”महामिलन” में साइन किया। फिल्म बनी लेकिन चली नहीं। कमलेश जी ने उस फिल्म की एक फोटो अपने बैग से निकाल कर मुझे दिखाई।
कलाकार कमलेश लता ने बताया कि ”उनके पति होम्योपैथी चिकित्सा की प्रेक्टिस करते, कलाकार नहीं थे , रंगमच के चहेते ही नहीं, विशेषज्ञ भी थे। मेरी कला में रुचि लेते, सुझाव देते और इसे निखारने में मुझे मदद मिलती। फिल्मों में अश्लीलता और भौंडेपन की शुरूआत हुई तो हमने नौटंकी को इससे दूर रखने के प्रयास किये। ‘ब्रज सारंग” संस्था बनाई, नए कलाकार खोजे और उन्हें ट्रेनिंग दी। जब तक शरीर चला, नौटंकी के शो किये। अब तो एक ही इच्छा है कि हमारी नौटंकी कला बची रहे और एक बार फिर धूमधाम से निखर के आये। ”
श्रेष्ठ अभिनय के लिए कलाकार कमलेश लता को तीन दर्जन छोटे बड़े पुरस्कार मिले हैं, इनमें सबसे बड़ा पुरस्कार 1991 में ‘उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी’ का मिला राज्यपाल के कर कमलों से। अब वे हकदार हैं पद्मश्री की। अफ़सोस और हैरत की बात यह है, ब्रज की संस्कृति, लोक कला आदि के प्रचार -प्रसार के नाम पर पहले से स्थापित और पद्मश्री ले चुके लोग सांसद हेमा मालिनी को हर साल अपने बायोडेटा देते रहते हैं पदमविभूषण की जुगाड़ के लिए। लेकिन हेमा जी कौन बताये कि इस सम्मान का सच्चा हकदार मथुरा में एक समर्पित कलाकार कमलेश लता भी हैं!