
(नेहरु जी की पुण्यतिथि पर विशेष)
विवेक दत्त मथुरिया
यह जो विराट जन सैलाब नजर आ रहा है, यह दिहाड़ी या मुफ्त की पूड़ी हलुआ पर लाई गयी भीड़ नहीं है। यह लोग स्वतः स्फूर्त अपने राष्ट्र निर्माता, युग दृष्टा, वैश्विक नेता और आजाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु की अंतिम यात्रा मे शामिल हुए। नेहरु जी की रखी गयी मजबूत बुनियाद पर ही देश उत्तरोत्तर विकास के नए आयाम स्थापित करता हुआ चला आ रहा है।
1947 में ब्रिटिश हुकूमत से मुक्ति मिलने के बाद भारत की बागडोर प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में संभाली जहाँ समस्याओं और चुनौतियों का पहाड़ खड़ा हुआ था। दो सौ वर्षों की ब्रिटिश साम्राज्य की पराधीनता ने देश को खोखला कर दिया था। सुईं तक भारत में नहीं बनती थी। वैज्ञानिक सोच के साथ प्रगति और विकास की बुनियाद रखने के लिए धन की दरकार को पूरा करने के लिए उस वक्त उन्होंने 196 करोड़ की संपत्ति राष्ट्र निर्माण के लिए दान कर दी। फिर आराम हराम है के नारे के साथ देश की जनता ने नेहरू जी की अगुवाई में विकास और प्रगति की नई इबारत लिखने का सिलसिला शुरू हुआ।
उनके समय में स्थापित कुछ प्रमुख संस्थान और शोध संस्थान इस प्रकार हैं:
शैक्षणिक और तकनीकी संस्थान
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IITs): नेहरू ने भारत में इंजीनियरिंग जनशक्ति के सृजन के लिए IITs की स्थापना को प्राथमिकता दी। पहला IIT, IIT खड़गपुर, 1951 में स्थापित किया गया था। इसके बाद IIT बॉम्बे (1958), IIT मद्रास (1959), IIT कानपुर (1959) और IIT दिल्ली (1961) की स्थापना हुई।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान( AIIMS): चिकित्सा शिक्षा और अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए दिल्ली में इसकी स्थापना की गई।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC): उच्च शिक्षा को विनियमित और बढ़ावा देने के लिए 1956 में स्थापित किया गया।
नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (NIM): यद्यपि यह 1965 में स्थापित हुआ, यह नेहरू के सम्मान में और पर्वतारोहण के प्रति उनके प्रेम के कारण स्थापित किया गया था।
जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय: 1964 में जबलपुर में स्थापित हुआ।
वैज्ञानिक और अनुसंधान संस्थान
वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR): यह नेहरू के वैज्ञानिक दृष्टिकोण का एक महत्वपूर्ण स्तंभ था। CSIR के तहत कई राष्ट्रीय प्रयोगशालाएं स्थापित की गईं, जिन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में अनुसंधान को बढ़ावा दिया। इनमें से कुछ प्रमुख हैं
राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला (National Physical Laboratory), राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाला (National Chemical Laboratory), केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान (Central Building Research Institute), केंद्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान (Central Food Technological Research Institute)।
भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC): होमी जे. भाभा के नेतृत्व में परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देने के लिए इसकी स्थापना की गई। नेहरू परमाणु ऊर्जा के महत्व को बखूबी समझते थे और इस क्षेत्र को बहुत महत्व दिया।
भारतीय सांख्यिकी संस्थान (Indian Statistical Institute – ISI): पी.सी. महालनोबिस के नेतृत्व में सांख्यिकी अनुसंधान और प्रशिक्षण के लिए एक महत्वपूर्ण संस्थान।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए राष्ट्रीय समिति (INCOSPAR): 1962 में स्थापित, यह भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की नींव थी, जो बाद में ISRO में बदल गई।
भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (Physical Research Laboratory): यह भी वैज्ञानिक अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र था।
इन संस्थानों के अलावा, नेहरू के कार्यकाल में कई सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (Public Sector Undertakings) और बड़े बांधों (जैसे भाखड़ा-नांगल, हीराकुंड) की स्थापना भी की गई, जिन्हें उन्होंने “आधुनिक भारत के मंदिर” कहा था। उन्होंने कला और संस्कृति के विकास के लिए भी कई संस्थानों को प्रोत्साहित किया, जैसे कि साहित्य अकादमी।
पंडित जवाहरलाल नेहरू, भारत के प्रथम प्रधानमंत्री, ने स्वतंत्र भारत की विदेश नीति को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी विदेश नीति और गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) आपस में गहरे जुड़े हुए थे और शीत युद्ध के दौर में भारत के लिए एक स्वतंत्र रास्ता सुनिश्चित करने का माध्यम बने।
नेहरू जी की विदेश नीति के मुख्य उद्देश्य और सिद्धांत:नेहरू की विदेश नीति के तीन मुख्य उद्देश्य थे:
संप्रभुता की रक्षा: कठिन संघर्ष से प्राप्त संप्रभुता को बनाए रखना।
क्षेत्रीय अखंडता: भारत की क्षेत्रीय अखंडता को सुरक्षित रखना।
आर्थिक विकास: तेज़ रफ्तार से आर्थिक विकास को बढ़ावा देना।
इन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए नेहरू ने गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाई। उनकी विदेश नीति के प्रमुख सिद्धांत निम्नलिखित थे:
गुटनिरपेक्षता: शीत युद्ध के दौरान दो प्रमुख शक्ति गुटों (संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व वाला पूंजीवादी गुट और सोवियत संघ के नेतृत्व वाला साम्यवादी गुट) में से किसी में भी शामिल न होना। इसका अर्थ यह नहीं था कि भारत निष्क्रिय रहेगा, बल्कि यह एक सक्रिय और स्वतंत्र नीति थी जिसका उद्देश्य वैश्विक शांति और सहयोग को बढ़ावा देना था।
पंचशील के सिद्धांत: चीन के साथ किए गए एक समझौते में नेहरू ने ‘पंचशील’ (शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांत) की अवधारणा दी। ये सिद्धांत थे:
एक-दूसरे की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का सम्मान।
एक-दूसरे पर आक्रमण न करना।
एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना।
समानता और परस्पर लाभ। शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व।
साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद का विरोध: नेहरू साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद के प्रबल विरोधी थे और उन्होंने विश्व के सभी पराधीन देशों के आत्मनिर्णय के अधिकार का समर्थन किया।
जातीय भेदभाव का उन्मूलन: उन्होंने रंगभेद और जातीय भेदभाव की नीतियों का दृढ़तापूर्वक विरोध किया।
विश्व शांति और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: नेहरू का मानना था कि अंतर्राष्ट्रीय विवादों को शांतिपूर्ण उपायों से सुलझाया जाना चाहिए और वे विश्व शांति तथा अंतर्राष्ट्रीय सद्भावना के लिए निरंतर प्रयासरत थे।
गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) में नेहरू जी की भूमिका:
गुटनिरपेक्ष आंदोलन का उदय शीत युद्ध की पृष्ठभूमि में हुआ था, जब दुनिया दो विचारधारात्मक और सैन्य गुटों में बंट गई थी। नेहरू ने अन्य नव-स्वतंत्र देशों के नेताओं, जैसे मिस्र के गमाल अब्दुल नासिर, यूगोस्लाविया के जोसिप ब्रोज़ टीटो, इंडोनेशिया के सुकर्णो और घाना के क्वामे न्क्रूमा के साथ मिलकर इस आंदोलन की नींव रखी।
गुटनिरपेक्ष आंदोलन में नेहरू की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण थी:
प्रेरक शक्ति: उन्होंने गुटनिरपेक्षता की अवधारणा को भारतीय विदेश नीति का आधार बनाया और इसे एक वैश्विक आंदोलन का रूप देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।स्वतंत्र मार्ग: नेहरू का मानना था कि नव-स्वतंत्र देशों को किसी भी महाशक्ति के साथ बंधकर अपनी नव-प्राप्त संप्रभुता को खतरे में नहीं डालना चाहिए। गुटनिरपेक्षता ने इन देशों को अपनी राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के अनुसार स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता प्रदान की।
वैश्विक मंच: गुटनिरपेक्ष आंदोलन ने विकासशील देशों को वैश्विक मंच पर अपनी आवाज़ उठाने और प्रमुख शक्तियों के बीच संघर्ष में मोहरे बनने से बचने का अवसर दिया।
शांति और निरस्त्रीकरण: नेहरू ने हथियारों की होड़ को समाप्त करने और सभी देशों के शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का आह्वान किया। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा में परमाणु हथियारों के उपयोग को प्रतिबंधित करने का प्रस्ताव भी प्रस्तुत किया।
तीसरी दुनिया के हितों का प्रतिनिधित्व: गुटनिरपेक्ष आंदोलन ने तीसरी दुनिया के देशों के दृष्टिकोण को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम प्रदान किया, क्योंकि इन देशों की राजनीतिक और आर्थिक समस्याएं अक्सर समान थीं।
संक्षेप में, नेहरू की विदेश नीति और गुटनिरपेक्ष आंदोलन ने भारत को शीत युद्ध के दौरान एक स्वतंत्र और गरिमापूर्ण स्थान प्रदान किया, जिससे भारत विश्व शांति और सहयोग को बढ़ावा देने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सका।
आजादी के संघर्ष में नेहरु जी तकरीबन 10 साल जेलों में काटे। तभी तो आज उन लोगों को न चाहते हुए विदेश में जाकर कहना पड़ता है कि हम गांधी,नेहरु और बुद्ध के देश से आये हैं जिनका स्वतन्त्रता संघर्ष में कोई योगदान नहीं मिलता।