लड़कियों को पढ़ाने निकलीं तो गोबर-पत्थर मारते थे लोग
जयंती पर विशेष आलेख
रामवीर सिंह तोमर (सामाजिक चिंतक)
देश में जब भी नारी शिक्षा और सामाजिक समानता की बात होती है, सावित्रीबाई फुले जी का नाम गर्व से लिया जाता है। सावित्रीबाई फुले जी ने एक ओर जहाँ महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक किया, वहीं शिक्षा को समाज सुधार का सशक्त माध्यम बनाया।
सावित्री बाई का जन्म 3 जनवरी 1831 को दलित परिवार में हुआ था। सावित्री बाई फुले ने ऐसे दौर में अलख जगाई थी जब लड़कियों का घर से बाहर निकलना भी मुश्किल था। स्कूल जाती थीं, तो उन पर कीचड़, गोबर फेंक दिया करते थे। सावित्रीबाई एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थीं और स्कूल पहुँच कर गंदी कर दी गई साड़ी बदल लेती थीं। उस दौर में बालिकाओं के लिये जब स्कूल खोलना पाप का काम माना जाता था। उन्होंने अपने पति ज्योतिबा फुले के साथ मिलकर कई क्रांतिकारी काम किए है। शिक्षा के क्षेत्र को माध्यम बनाकर महिला समानता और उनके उत्थान के लिए बहुत बड़ा योगदान दिया। युवाओं को उनसे प्रेरणा लेकर महिला सशक्तिकरण के लिए काम करना चाहिए। उन्होंने लड़कियों के लिए दर्जनों स्कूल खोलें।
सावित्री बाई फुले नारी मुक्ति आंदोलन की प्रेरणता थीं। असामाजिक और बुरी रीतियों के खिलाफ सावित्री बाई फुले ने अपने पति के साथ मिलकर आवाज उठाई। छुआछूत, सती प्रथा, बाल-विवाह, और विधवा विवाह जैसी कुरीतियों के विरूद्ध काम किया। उन्होंने मजदूरों के लिए रात्रि में स्कूल खोला ताकि दिन में काम पर जानें वाले मजदूर रात में पढ़ाई कर सकें। सावित्री बाई ने बहुत बड़ा और साहसिक कदम उठाया। विधवा नारी को आत्महत्या करने से रोका और उसकी डिलीवरी अपने घर पर कराई। हर बिरादरी और धर्म के लिये उन्होंने काम किया। 1897 में पुणे में प्लेग नामक बीमारी फैली लेकिन वह लोगों की सेवा करती रही है। ऐसे में सावित्री बाई भी इसकी चपेट में आग गई और 10 मार्च 1897को उनका निधन हो गया। सावित्री बाई फुले का पूरा जीवन समाज सेवा में निकला। गलत के खिलाफ आवाज उठाई, समाज की कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई, महिलाओं के हक के लिए लड़ी तो महामारी आने पर लोगों की सेवा करते-करते अंतिम सांस ली।
महान समाज सुधारक, नारी मुक्ति आंदोलन की प्रेणता को कोटिश नमन।