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व्यंग
विवेक दत्त मथुरिया (वरिष्ठ पत्रकार)
हमारा देश भारत पर्व और उत्सवों का देश है। सुदूर अतीत से पर्व और उत्सव मनाने की परंपरा का निर्बाध रूप से निर्वहन करते चले आ रहे हैं। पर्व और उत्सवों की बात चल निकली है, तो एक ऐसे नए आधुनिक पर्व, उत्सव, फेस्टीवल, जलसे की बात करते हैं जिसे हम लोग पूरी ईमानदारी से मना रहे हैं। इस उत्सव का नाम है लूट का जलसा। यह जलसा शिक्षा जगत से जुडा है।
शिक्षा कारोबारी निजी स्कूल संचालक इस वक्त लूट मचाये हुए हैं। यह स्कूलों का लूट पर्व अपने देश मे मार्च अप्रैल के महीने में हर साल सरकार औऱ सिस्टम को कोसते हुए मनाया जाता है।
इस पर्व में सबसे बड़ी सहभागिता मध्यवर्ग की रहती है। मध्यवर्ग की सबसे बड़ी खासियत यह है कि निजीकरण की पैरोकारी करेगा पर बेटी के लिए दामाद सरकारी नौकरी वाला ऐसे खोजेगा जैसे नासा के वैज्ञानिक चांद और मंगल पर जीवन खोजने में लगे हैं। बच्चों के स्वर्णिम भविष्य के नाम पर खुशी खुशी ऐसे लुटने को बेचैन रहते हैं, जैसे कोई आशिक माशूका के लिए बेचैन रहता है। बच्चों की शिक्षा के नाम पर होने वाली इस लूट पर कोई सवाल नहीं उठाते। पर हकीकत यह कि निजी स्कूलों के हाथों लुटने के बाद मन ही मन ऐसे कोसते हैं जैसे मुमकिन वाले साहब अपने विरोधियों को 24 घंटे में से 28 घंटे कोसते रहते हैं। मध्यवर्ग निजी स्कूलों की लूट का इस कदर आदी हो गया है, जैसे नशेड़ी नशे का।
गजब तो इस बात का देखिए कि सरकार को सबसे ज्यादा टैक्स अदा करने वाला मध्यवर्ग न इस लूट पर सवाल उठाता और न ही लोकतांत्रिक तरीके से अपना विरोध दर्ज करता है। टैक्स के एवज में मुफ्त शिक्षा स्वास्थ्य देना सरकार का फर्ज है। पर अब जनता सवाल करना भूल गई है। जनता जान गई है कि सवाल करना गैर राष्ट्रवादी आचरण है, तो फिर मनाते रहिए लूट का जलसा। लूटिए और अपने परिचितों को जलसे में शामिल कर लुटने के लाभ से अवगत कराएं। शिक्षा के नाम पर हो रही इस लूट का सबसे बड़ा फायदा यह है कि आप लोअर मिडल क्लास से उठकर आभिजात्य वर्ग में प्रवेश पाने की पात्रता हासिल कर लेने में सफल हो जाते हैं। मतलब आपका स्टेटस सिंबल बढ जाता है। आर्थिक दबाव से त्रस्त हैं, पर मस्त होने का शानदार अभिनय विदूषक की भांति कर रहे हैं । इसे सरल तरीके से ऐसे भी समझ सकते हैं। स्टेटस सिंबल के नाम पर हमने अपनी फटी कमीज के ऊपर कोट पहन लिया हो। पर कोई कुछ भी कहे आखिर सवाल बच्चों के भविष्य का है। ऐसे में बिना सवाल किए लुटना हम लोगों का राष्ट्रवादी धर्म और कर्त्तव्य है। सवाल करना गैर राष्ट्रवादी हरकत मानी जाएगी। फिर इस अमृत काल में सच बोलने का जोखिम उठाना नितांत मूर्खता और नासमझी है। वैसे भी लोक कहावत है कि राम नाम की लूट है लूट सके लूट बस इतना संशोधन करना है कि राम नाम की लूट है लुट सके तो लुट…. फिर बाद में पछतायेगा जब एडमिशन जाएगा छूट।