जानिए बरसाना की लठामार होली का भाव पक्ष
योगेन्द्र सिंह छौंकर (प्रबंध संपादक)
बरसाना (ब्रज ब्रेकिंग न्यूज़)। बरसों की परंपरा और श्यामा श्याम की लीला का अनूठा परिदृश्य प्रिया की सखियां और प्रियतम के सखा, दोनांे ही एक दूसरे के पूरक। श्यामा की छवि है हुरियारिनों के नयनों में और हुरियारों की आंखों से श्याम सुंदर झांक रहे हैं। प्रेम पराकाष्ठा पर पहुंच गया है, जीव और परमात्मा के बीच से माया का परदा हट गया है।
श्याम सखाओं के साथ रंगीली गली में उतर चले आ रहे हैं। गली में दरवाजों पर हुरियारिनें अपने हाथों में लाठियां संभाले खडीें हैं। हुरियारे भी टेसू के फूलों के रंग से तर गुलाल में लिपटे ढाल संभाले आ खडे हुए हैं। दोनों पक्ष भाव विह्वल हो एक दूसरे को निहार रहे हैं। लठ और ढाल दोनों एक दूसरे से मिलन को आतुर हैं पर प्रेम का इतना आधिक्य उमडा है कि लठ्ठ चलाने का होश किसे है। चोट तो पड रही है पर दृगों की। हुरियारिनों के नयन बाण श्याम सखाओं के मन को निशाना बनाए हुए हैं।
लेकिन लठामार की परम्परा का निर्वाह तो करना ही है, हुरियारे जानते हैं कि हुरियारिनों के लिए श्याम सखाओं पर लठ्ठ प्रहार करना आसान नहीं होगा। अपनों पर भला लठ्ठ प्रहार कैसे करेंगीं। इसलिए हुरियारिनों ने अब गोपियों को चिढाने के लिए गाली गलौज की शब्दावली से भरे पदों का गायन शुरू कर दिया है। साथ ही भौंडा नृत्य भी करते जा रहे हैं।
ब्रज में गालियों का महत्व तो इस कदर बताया गया है कि रसखान ने अपने एक पद में एक गाली पर कोटि आदर न्योछावर कर दिए हैं। ऐसे मे गालियों का आज के दिन बुरा कौन माने। लेकिन कब तक हुरियारों की इन हरकतों को सहन ही किया जाए। आखिर गोपियों से सब्र का प्याला झलक ही उठा। गोपियों ने ग्वालों को भगाने के लिए लाठियां घुमानीं शुरू कर दी हैं। हुरियारे भी सावधान हैं एक कुशल योद्धा की तरह ढाल पर गोपियों के लठ्ठ प्रहारों को रोकना शुरू कर दिया है।
हुरियारिनों ने जब देखा कि इस तरह से हुरियारों को खदेड पाना मुश्किल है तो उन्होंने आक्रमण की रणनीति ही बदल दी है। अब हुरियारिनों के टोल ने एक एक हुरियारे को अकेला घेर लिया है। आधा दर्जन हुरियारिनें अकेलेेे हुरियारे पर प्रहार करती हैं वो भी इतने जबर्दस्त कि अगर किसी दर्शक श्रद्धालु को लग जाए तो जिंदगी भर न भूले। पर हुरियारा भी पुराना खिलाडी है, वह पंजों के बल जमीन पर बैठ कर सिर को ढाल से बचाता है। वह जगह बदलने के लिए भी पंजों पर ही कूदता है।
कुल मिलाकर गोपियों और ग्वालों के बीच चलता यह संग्राम सांकेतिक है या वास्तविक दर्शक कुछ निर्णय नहीं कर पातेे। दोनों ओर से जमकर शक्ति प्रदर्शन होता है। यह क्या डेढ घंटा एक पल की तरह बीत गया और किसी को आभास ही नहीं हुआ। आभास हो भी तो कैसे लठामार के इस दृश्य को देखने के लिए अस्तांचल की ओर जाता हुआ सूर्य भी तो ठिठक कर खडा हुआ है। अंततः लठामार संग्राम का फैसला हो ही गया, हुरियारों ने हार मान ली।
हुरियारिनों में राधा रानी की छवि का दर्शन कर हुरियारे उनके पैर छूकर अपने नंदगांव की ओर रुख करते हैं। विजेता गोपियां जीत का समाचार राधा रानी को सुनाने लाडिलीजी मंदिर की ओर चली जाती हैं। ऐसा ही कुछ नजारा इस बार 18 मार्च को बरसाना में देखने को मिलेगा।