- सिर्फ विस्तार क्षेत्र के बल पर लड़ी भाजपा को झेलनी पड़ी पराजय
(योगेंद्र सिंह छोंकर, वरिष्ठ पत्रकार)
बरसाना (ब्रज ब्रेकिंग न्यूज)। विस्तार के बाद हुए निकाय चुनाव में बरसाना में आम आदमी पार्टी ने अपनी जीत का परचम लहराया है, वहीं इस निकाय में मजबूत मानी जा रही भारतीय जनता पार्टी मुख्य मुकाबले में स्थान बनाने तक में भी कामयाब नहीं हो सकी। जबकि चुनाव के पहले तक भाजपा इस निकाय में सर्वाधिक मजबूत पार्टी मानी जा रही थी। भाजपा से टिकट मांगने वालों की संख्या भी सबसे अधिक थी। पूर्व में भी यह निकाय भाजपा का मजबूत गढ़ रहा है, यहां की पिछली चेयरमैन भाजपा से ही थीं। विधानसभा चुनाव में भाजपा को यहां अच्छी संख्या में वोट मिले थे। अब इस चुनाव में ऐसा क्या हुआ जो पार्टी को इस करारी हार का सामना करना पड़ा, यह विचारणीय है। इसका विश्लेषण करने के लिए सुविधा की दृष्टि से बरसाना नगर पंचायत को दो भागों में बांट कर देखते हैं। पहले भाग में रखते हैं बरसाना कस्बे को जो विस्तार से पहले की बरसाना नगर पंचायत थी। दूसरे हिस्से में रखते हैं विस्तार क्षेत्र को जहां पूर्व में नौ ग्राम पंचायतें अस्तित्व में थीं। भाजपा की प्रत्याशी को मिले मतों को देखें तो उन्हें विस्तार क्षेत्र से 2672 वोट मिले जबकि बरसाना कस्बे से मात्र 318 वोट ही मिल पाए। गौरतलब यह है कि बरसाना कस्बा पिछले कई वर्ष से भाजपा का मजबूत गढ़ माना जाता रहा है। लोकसभा और विधानसभा चुनावों में यहां से भाजपा अच्छा वोट लेती रही है। पिछले नगर पंचायत चुनावों पर नजर डालें तो पाएंगे कि वर्ष 2006 के चुनाव में भाजपा की विमला गोस्वामी यहां से जीती थीं और उन्हें करीब नौ सौ वोट मिले थे। वर्ष 2012 के चुनाव की बात करें तो। भाजपा के सुभाष तोमर यहां दूसरे स्थान पर रहे थे और उन्हें 1329 वोट मिले थे। वर्ष 2017 के चुनाव में यहां से भाजपा की श्यामवती यहां से जीती थीं और उन्हें 2065 वोट मिले थे। ऐसे में इस बार भाजपा के साथ ऐसा क्या हुआ कि पूर्व प्रत्याशी सुभाष तोमर और श्यामवती के गृह वार्ड से भाजपा मात्र 45 वोट ही ले पाई।
पार्टी के लोगों से बात करने पर अधिकांश ने यह माना कि प्रत्याशी चयन से कार्यकर्ता नाखुश थे जिसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ा। पार्टी से टिकट मांग रही पूर्व सभासद हीरादेवी और पूर्व चेयरमैन विमला गोस्वामी ने तो निर्दलीय ही चुनाव में हिस्सा लिया।
मतदाताओं की यह नाराजगी वास्तव में प्रत्याशी के प्रति है या पार्टी के प्रति, इस बिंदु पर विचार करने से पहले हम वार्डवार भाजपा के चेयरमैन उम्मीदवार को मिले वोट और उन्हीं वार्डों में भाजपा के सभासद उम्मीदवारों को मिले वोट की तुलना करके देखते हैं। वार्ड संख्या एक से चेयरमैन प्रत्याशी को महज 24 वोट मिले वहीं भाजपा के सभासद उम्मीदवार सतीश चन्द्र को 235 वोट मिले हैं। वार्ड संख्या तीन में चेयरमैन उम्मीदवार को 89 वोट मिले वहीं सभासद उम्मीदवार पिंकू को 427 वोट मिले हैं। वार्ड संख्या पांच में चेयरमैन उम्मीदवार को 57 वोट मिले वहीं सभासद उम्मीदवार अभिमन्यु को 178 वोट मिले हैं। वार्ड संख्या सात में चेयरमैन उम्मीदवार को 108 वोट मिले वहीं सभासद उम्मीदवार मुन्नी को 298 वोट मिले हैं। वार्ड संख्या नौ से चेयरमैन उम्मीदवार को 99 वोट मिले वहीं सभासद उम्मीदवार मीरा देवी को 281 वोट मिले हैं। वार्ड संख्या 10 से चेयरमैन उम्मीदवार को 126 वोट मिले वहीं सभासद उम्मीदवार माया को 489 वोट मिले हैं। वार्ड संख्या 11 से चेयरमैन उम्मीदवार को 51 वोट मिले वहीं सभासद उम्मीदवार को 101 वोट मिले हैं। वार्ड संख्या 15 से चेयरमैन उम्मीदवार को महज 45 वोट मिले वहीं सभासद उम्मीदवार चंद्रशेखर को 285 वोट मिले हैं। वार्ड संख्या 16 से चेयरमैन उम्मीदवार को सिर्फ 60 वोट मिले वहीं सभासद उम्मीदवार गीता को 342 वोट मिले हैं।
इस तरह यह साफ हो जाता है कुल 17 में से इन नौ वार्डों में चेयरमैन उम्मीदवार को मात्र 654 ही वोट मिल पाए जबकि सभासद उम्मीदवार 2636 वोट ले गए। वार्ड संख्या 17 में यह स्थिति लगभग बराबर रही, यहां चेयरमैन उम्मीदवार को 81 वोट मिले और सभासद उम्मीदवार को 89 वोट मिले। वार्ड संख्या 13 और 14 में स्थिति चेयरमैन उम्मीदवार के पक्ष में दिखी। वार्ड संख्या 13 से भाजपा के चेयरमैन उम्मीदवार को 391 वोट मिले और सभासद उम्मीदवार उत्तम को 279 वोट मिले। वार्ड संख्या 14 में चैयरमैन उम्मीदवार को 90 वोट मिले और सभासद उम्मीदवार अतर सिंह को 29 वोट मिले। वार्ड संख्या 2, 4, 6, 8 और 12 से सभासद पदों के लिए भाजपा के उम्मीदवार मैदान में थे ही नहीं। यहां यह भी ज्ञात हो कि वार्ड संख्या 6 और 8 से सभासद निर्विरोध चुने गए हैं।
उपरोक्त विश्लेषण से यह तो साफ है कि भाजपा के चेयरमैन और सभासद उम्मीदवार एक टीम के रूप में एक दूसरे का सहयोग कर पार्टी को जिताने के बजाय अपनी-अपनी जीत सुनिश्चित करते नजर आए। जीत के लिए जिस टीमवर्क की जरूरत होती है और जिस जबरदस्त टीमवर्क के लिए भाजपा जानी जाती है, उसका इस चुनाव में अभाव देखने को मिला। पार्टी के कई पुराने कार्यकर्ता और संगठन के लोग अपने प्रत्याशी से दूरी बनाए नजर आए। जो भाजपाई अब तक यह कहते थे कि प्रत्याशी तो कमल का फूल होता है उनकी संख्या भी कम ही दिखाई दी।
इस तरह यह स्पष्ट हो जाता है कि बरसाना कस्बे में भाजपा कमजोर नहीं हुई है बल्कि भाजपा की प्रत्याशी को पार्टी का अपेक्षित सहयोग नहीं मिला। जिसके चलते भाजपा की स्थिति कमजोर हुई साथ ही टीमवर्क के अभाव में पार्टी की हार सुनिश्चित हो गई।