
विवेक दत्त मथुरिया
जयपुर (ब्रज ब्रेकिंग न्यूज)। राजस्थान की दो सौ वर्ष पुरानी पारंपरिक शैली लोक नाट्य परम्परा तमाशा मंचन आमेर में अंबिकेश्वर महादेव मंदिर प्रांगण किया गया। भट्ट परिवार की अनूठी कृति गोपीचंद भर्तृहरि को देख दर्शक भाव विभोर हो उठे। बंशीधर भट्ट द्वारा लिखित इस तमाशे का निर्देशन तमाशा साधक दिलीप भट्ट ने किया।
गत दिवस के आमेर के अंबिकेश्वर महादेव मंदिर प्रांगण में परम्परा नाट्य समिति, भारतीय विद्या भवन इन्फोसिस फाउंडेशन, कल्चरल आउटरीच प्रोग्राम, जयपुर विरासत फाउंडेशन, जाजम फाउंडेशन, श्री गैटेश्वर कला संस्थान और अम्बिकेश्वर महादेव तमाशा समिति द्वारा आयोजन में तमाशा शास्त्रीय राग रागनियो पर केंद्रित है जिसमें राग मालकौंस, पहाड़ी, भोपाली, भैरवी, केदार, सिंधकाफी, बिहाग, वृंदावनी, सारंग, में तमाशा गोपीचंद भर्तृहरि की प्रस्तुति हुई। जिसमें इस बार गोपी जी के पोते सचिन भट्ट ने गुरु जालंधर की भूमिका को सहज तरह से पेश किया तो सुधि दर्शकों को बड़ा आनंद आया। भट्ट जी महाराज की यह परम्परा पुनः जीवित होगी साथ गोपी जी के बेटे दिलीप भट्ट ने गोपीचंद की भूमिका निभाई। साथ में गोपी जी के शिष्य ईश्वर दत्त माथुर ने भी माता मैनावती की भूमिका अदा की, साथ में हर्ष भट्ट ने रानी पाटम दे और बाल कलाकार जीवितेश शर्मा बहन बने। चार घंटे तक चले इस तमाशे में शुरुआत गणेश वंदना सुमरू शारद मात गणेश मौपे किरपा करो, हमेश पहाड़ी भोपाली ने इसके बाद माता सुनो हमारी बात काहे सोच करो दिन रात। मालकौंस में दिलीप भट्ट द्वारा गायन किया गया
राजा गोपीचंद अपने पिता की इकलौते पुत्र थे एक बहिन जिसका नाम चंद्रावली था। पिता का नाम त्रिलोकी नाथ था और माता का नाम मैनावती और रानी पाटम दे पत्नि थी। एक दिन एक ब्राह्मण ज्योतिषी गुरु जालंधर नाथ जी एक दिन माता के पास आए और बोले कि अपने बेटे की उम्र को अमर करने के लिए बेटे को जोग दिला के इसे जोगी बना दीजिए। बस उसी चिंता में माता रहने लगी और अपने बेटे की इन बातों को सुनकर बेचैन रहने लगी। कथा का यही सार है। तमाशा में जीवन उपदेश, गुरु भिक्षा, गुरु दीक्षा, त्याग, बलिदान, यह आख्यान शास्त्रीय संगीत में समेटने का प्रयास किया। संगतकारों में तबले पर शैलेंद्र शर्मा सारंगी पर मनोहर टांक हारमोनियम पर शेर खान, गिर्राज बालोदिया तमाशे के बाद दिलीप भट्ट द्वारा पारंपरिक गणगौर का गायन भी मंदिर प्रांगण में किया जिसमें रंगीला शंभु गौरा न ले पधारो महारा पांवणा, काले भुजंग सिर धरे इक जोगी आया हे तमाशे में हनुमान चालीसा का पाठ भी युवाओं द्वारा किया गया। तमाशे को भट्ट परिवार की छठी पीढ़ी और सातवीं पीढ़ी द्वारा पेश किया गया यह तमाशा होली के पन्द्रह दिन बाद चैत्र की अमावस्या को होता है और गणगौर पूजने का निमंत्रण दिया जाता है।