
झूमर का होता है विशेष आकर्षण
ब्रज संस्कृति शोध संस्थान की कार्तिक मास अभिलेखीकरण परियोजना में किया गया सर्वेक्षण
गोपाल शरण शर्मा
प्रकाशन अधिकारी, ब्रज संस्कृति शोध संस्थान, वृंदावन
कार्तिक मास में श्रीधाम वृन्दावन में विभिन्न राज्यों की आंचलिक संस्कृतियों का संगम देखने को मिलता है। इसी क्रम में बुन्देलखण्ड के ग्रामीण एवं वनांचल से अहीर समुदाय के चरवाहे वृन्दावन में ‘दिवाली’ नृत्य करते हैं , तब मृदंग की थाप पर गूँजने लगती हैं कुंज गलियाँ। यह दृश्य द्वापर युगीन ब्रज की याद दिलाता है। गोवर्धन पूजा के दिन वृन्दावन में मौनव्रत के साथ पारंपरिक वेषभूषा में वर्षभर एकत्रित किये गए मोरपंखों को यमुना में प्रवाहित करने के लिए आते बुन्देलखण्ड के श्रद्धालु यमुना स्नान करने के बाद देवालय दर्शन एवं नगर भ्रमण के लिए नृत्य करते निकलते हैं। यह क्रम दिन भर चलता है।
नृत्य से साकार होता है कृष्णकालीन दृश्य
दीपावली के अगले दिन नगर के विभिन्न मंदिर परिसरों में ‘दीवाली’ नृत्य की धूम रहती है। टिमकी -मृदंग एवं ढ़ाेलक की थाप पर मोरपंख के साथ सामूहिक नृत्य करते व दीवारी गाते अहीरों की टोलियों को देखना एक अलग अनुभूति है। यह दृश्य द्वापरयुगीन ब्रज की याद दिलाता है।
बारह वर्षों की साधना है यह
बारह साल तक प्रत्येक वर्ष गोवर्धन पूजा के दिन मौन रह कर यह अनुष्ठान किया जाता है।पड़वा से नर्तक मौन व्रत रख कर देव स्थलों पर जा-जाकर नृत्य करते हैं। इस मौन उपवास के कारण ही इस नृत्य के कलाकारों को ‘मौनियाँ’ कहा जाता है। इस नृत्य में कुछ युद्धक पैतरे भी देखने को मिलते है जो भारत की प्राचीन आत्मरक्षा कला का बचा रह गया अवशेष है। यह अनुष्ठान देवोत्थान एकादशी को पूर्ण होता है।
विशेष प्रकार की झूमर पहन कर करते है नृत्य
‘मौनियाँ’ नर्तक अपने दिवाली नृत्य के दौरान एक विशेष प्रकार की झूमर पहनते हैं, जिसे तैयार करने में 2 से 3 माह का समय लगता है। ये झूमर घोड़े व अन्य पशुओं की पूंछ के बालों में रंग-बिरंगी कौड़ियों,चमकीले पत्थरों,गुरियों,मोरपंखों को रस्सी में बुनकर तैयार की जाती है। कमर में पहन जब नर्तक घूमते हैं तो यह झूमर अदभुत दृश्य उत्पन्न करती है।
ब्रज संस्कृति शोध संस्थान की परियोजना में शामिल है मौनियों का दीवाली नृत्य
ब्रज संस्कृति शोध संस्थान गोदा विहार,वृन्दावन के सचिव लक्ष्मीनारायण तिवारी बताते हैं कि संस्थान की कार्तिक मास नियम सेवा अभिलेखीकरण परियोजना के अंतर्गत सुदूर अंचलों की संस्कृतियों का वृन्दावन में संगम होता है। संस्थान के प्रकाशन अधिकारी गोपाल शरण शर्मा के निर्देशन में प्रथम बार समग्ररूप से इस सांस्कृतिक संगम का अभिलेखीकरण कराया जा रहा है।
