
बरसाना(ब्रज ब्रेकिंग न्यूज)। अगर पुष्पक विमान भी आ जाए तो उसका निमंत्रण स्वीकार मत करना, उसे ठुकरा देना, क्योंकि किशोरी जी का बरसाना ही सबसे बड़ा स्वर्ग है। माता जी गोशाला में चल रही नौ दिवसीय श्रीरामकथा में कथा प्रवक्ता मोरारी बापू ने यह भावपूर्ण प्रसंग सुनाकर श्रद्धालुओं को बरसाना की महिमा से परिचित कराया।सुंदरकांड का संदर्भ लेते हुए बापू ने कहा कि पुष्पक विमान रावण का था जिसे भगवान राम ने अयोध्या वापसी के लिए साधन बनाया। किंतु यदि वही पुष्पक विमान बरसाना छोड़ने आए तो भक्त को उसे ठुकरा देना चाहिए, क्योंकि जो सुख और माधुर्य किशोरी जी के इस बरसाना में है वह देवताओं के लोक और स्वर्ग में भी दुर्लभ है।
बुधवार को बरसाना की माताजी गोशाला में चल रही मानस गौ सूक्त आधारित नौ दिवसीय रामकथा में प्रख्यात कथावाचक मोरारी बापू ने कहा कि बरसाना उत्सव और रस की भूमि है। यहां की धूल तक प्रसाद के समान है और यही सच्चा स्वर्ग है। उन्होंने श्रद्धालुओं को संदेश दिया कि भक्ति ही जीवन की सर्वोच्च प्राप्ति है और भक्ति का वास्तविक आनंद इसी भूमि पर संत संग और साधना से मिलता है।
कथा पंडाल में बैठे हजारों श्रद्धालु यह प्रसंग सुनकर भावविभोर हो उठे। राधे राधे और जय श्रीकृष्ण के जयकारों से माता जी गोशाला का वातावरण गूंज उठा। श्रद्धालु झूमते हुए बरसाना की महिमा का रसपान करते रहे। बापू ने आगे कहा कि बरसाना केवल एक नगर नहीं, बल्कि यह राधारानी का दिव्य आंगन है। यहां के पर्व, कुंड और गलियां भक्तों को अलौकिक आनंद और आत्मिक शांति प्रदान करती हैं। यही कारण है कि इस भूमि का महात्म्य किसी भी स्वर्ग से बड़ा है।
सेवा के स्वरूप पर बोले हुए बापू ने कहा कि सेवा तीन प्रकार की होती है वित्तजा, तनुजा और मनसा। वित्तजा सेवा गंगा, तनुजा सेवा जमुना और मनसा सेवा सरस्वती के समान हैं। इनके संगम से सेवा की त्रिवेणी बनती है। अथर्ववेद के गौसूक्त से गौमाता की महिमा का वर्णन करते हुए बापू ने बताया कि जब हमारा शरीर दुर्बल हो जाता है तो गौमाता हमें पुष्ट करती है। हमारे शरीर और चित्त को पुष्ट कर हमें सौंदर्य प्रदान करती है। गौमाता औषधमयी है, गौमाता सर्वधर्ममयी, गौमाता सर्वदेवमयी है, गौमाता सर्वधाममयी है। गौमाता के चार पैर चारधाम के समान होते हैं, गौमाता में चारों धामों के दर्शन होते हैं। गौमाता सर्वलोकमयी है।
बापू ने कथा श्रवण के अनुशासन को समझाते हुए कहा कि कथा मुक्ति का श्रृंगार है। देहाभिमान, धनाभिमान और प्रतिष्ठाभिमान का त्याग करते हुए कथा श्रवण करना चाहिए। समय की शीलता, स्थान की शीलता, समझ की शीलता, श्रवण की शीलता, शब्द की शीलता, सुर की शीलता, स्वर और शरीर की शीलता का पालन कथा के श्रोता और वक्ता दोनों को करना चाहिए।
पांचवें दिन की कथा में बनारस के जगद्गुरु सतुआ बाबा महाराज, कोटवन के मौनी बाबा, महामंडलेश्वर स्वामी कृष्णानंद, गिरधर गोपाल दास, बालकृष्ण दास, राम मुरारीदास नागा, पूर्व मंत्री श्रीकांत शर्मा, मान मंदिर सेवा संस्थान के अध्यक्ष रामजीलाल शास्त्री, कार्यकारी अध्यक्ष राधाकांत शास्त्री, सचिव सुनील सिंह ब्रजदास, माताजी गौशाला के संयोजक राजबाबा, नरसिंह दास बाबा, रामकथा के आयोजक हरेश एन संघवी, समाजसेवी वीना हरेश संघवी, निकुंज संघवी, नीलिमा संघवी, अवनी संघवी, जिला पंचायत सदस्य संजय सिंह, हिमांशु आदि उपस्थित रहे।
