विवेक दत्त मथुरिया (वरिष्ठ पत्रकार)
लोकसभा चुनाव का प्रचार तो चल रहा है पर महसूस नहीं हो रहा कि इस बार चुनाव भी हो रहा है। आमजन चुनावी चकल्लस से दूर है। थोड़ी बहुत चुनावी चर्चा बाजारों और दफ्तरों में तो देखने सुनने को मिल जाती है। बाकी सन्नाटा और गहरी खामोशी। लोकतंत्र के महापर्व महोत्सव को लेकर पहली बार पसरा सन्नाटा और गहरी खामोशी जनता के अंदर किसी गहरे दर्द की खबर दे रही है। जनता सुन समझ रही है पर कुछ बोल नहीं रही है। यह खामोशी और सन्नाटा तूफान से पहले की शान्ति की कहावत को पुष्ट करता नजर आ रहा है।
जनता के अंदर क्या चल रहा है। नेता और मीडिया इसे डीकोड करने में लगे हैं, पर कोई जीत हार को लेकर पक्के तौर पर दावा करने की स्थिति में नहीं है। विपक्ष है तो, पर वह अनुपस्थित सा नजर आ रहा है। एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि हद से ज्यादा परेशान आदमी चुप रहने में अपनी भलाई समझता है। मतलब साफ है कि जनता अंदर से परेशान है। उसे लगता है बहसबाजी मे कुछ नहीं रखा, जो करना है वोट से करना है।
सवाल यह है कि जनता का वह कौन सा दर्द और परेशानी है जो अभिव्यक्त नहीं हो रहा है। दर्द है, परेशानी है, पर जनता बताने को तैयार नहीं है। जनता की खामोशी के पीछे जो दर्द है तो उसको समझने के लिए उसके आर्थिक हालातों की गहरी पड़ताल करनी होगी। कोराना काल में ध्वस्त हो चुके रोजी रोजगार के दर्द से पीछा नहीं छूटा था कि सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती महंगाई। बच्चों की महंगी पढ़ाई और महंगा इलाज। घाटे का सौदा साबित हो रही खेती किसानी। भस्मासुर की तरह मुंह बाए खड़े बेरोजगारों की लंबी कतार।
इन सवालों से मुंह फेरे खड़ी सरकार के इस उपेक्षित व्यवहार से जनता अंदर से दुखी है। जनता के बुनियादी सवालों से सरकार अपनी जवाबदेही से बचते हुए गैर जरूरी मुद्दों से ध्यान भटकाने में लगी है। जनता की यह गहरी खामोशी गंभीर संदेश दे रही है। इस बार के चुनावी ऊंट किस करवट बैठेगा, इसे लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही सहमे हैं। जीत के दावे दोनों ओर से किए जा रहे हैं पर संशय दोनों ओर बना हुआ है।
वहीं दूसरी ओर फटी जेब लिए घूम रही जनता अपनी खामोशी से सियासत को गंभीर संदेश दे रही है कि –
भूखे भजन नहीं होत गुपाला जे लेओ अपनी कंठी माला।
दूसरे शब्दों में अदम गोंडवी की भाषा में कहें तों चुनावी दौर में जनता की खामोशी का फलसफा कुछ यूं है –
तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है,
मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है।