श्रीकृष्ण ने अपने बाबा और मैया के लिए किया था आवाहन
सोलहवीं सदी ने नारायण भट्ट ने किया पुनः प्रकाशित
योगेंद्र सिंह छौंकर
बरसाना(ब्रज ब्रेकिंग न्यूज)। जब श्रीकृष्ण ने ब्रजभूमि पर अवतार धारण किया था तो उनके साथ सभी देवी देवता और तीर्थों ने भी अपना अपना रूप बदल कर ब्रज में निवास करना शुरू किया था यही वजह है कि इस भूमि का हर कण पवित्र और पूज्य माना जाता है। इस समय प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन हो रहा है और लाखों की संख्या में लोग पवित्र त्रिवेणी की धारा में स्नान करने संगम तट पर पहुंच रहे हैं पर बहुत कम लोग जानते हैं कि ब्रज में भी त्रिवेणी का एक स्वरूप विराजमान है और मान्यता है कि इस त्रिवेणी कूप के स्नान से भी संगम स्नान का ही पुण्य प्राप्त होता है।
बरसाना के लाडलीजी मंदिर में विराजमान श्रीजी के श्रीविग्रह का प्रकाश करने वाले ब्रजाचार्य नारायण भट्ट ने सोलहवीं सदी में अपनी तपस्या के प्रभाव से त्रिवेणी की धारा को ब्रज में प्रकट किया था। वर्तमान में यह धारा एक कूप के रूप में बरसाना के पास ऊंचगांव में उपस्थित है। उन्हीं नारायण भट्ट के वंशज और ब्रजाचार्य पीठ के प्रवक्ता घनश्याम राज भट्ट बताते हैं कि एक बार नंद बाबा और यशोदा मैया ने समस्त तीर्थों की यात्रा पर जाना चाहा तो श्रीकृष्ण ने उनकी वृद्धावस्था के कारण उन्हें तीर्थ यात्रा पर जाने से मना कर दिया और समस्त तीर्थों का आवाहन कर उन्हें ब्रज में ही बुला लिया। यही वजह है कि केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री और त्रिवेणी आदि तमाम तीर्थ ब्रज में आज भी मौजूद हैं। सोलहवीं सदी में ब्रजाचार्य नारायण भट्ट ने विलुप्त हो चुकी त्रिवेणी की धारा को अपने तप के बल पर पुनः प्रकट कर दिया। यह विवरण नारायण भट्ट चरितामृत ग्रन्थ में दिया गया है। वर्तमान में ब्रज में आने वाले बहुत से लोग इस त्रिवेणी कूप की महत्ता से अनभिज्ञ हैं पर स्थानीय ब्रजवासी इससे भली भांति परिचित हैं और इसके प्रति आदर भाव रखते हैं।
नारायण भट्ट ने किया था लाडलीजी के विग्रह का प्राकट्य
सोलहवीं सदी के ब्रज के प्रमुख वैष्णव आचार्यों में से एक नारायण भट्ट का जन्म दक्षिण भारत के मुदरई में हुआ था। बारह वर्ष की अवस्था में उन्होंने ब्रज में आकर ब्रज में तीन दर्जन से अधिक देव विग्रहों का प्राकट्य कर उनके मंदिर बनवाए थे। साथ ही उन्होंने राधा कृष्ण की लीलाओं से सम्बन्धित तमाम स्थानों को प्रकाशित कर उनका महत्त्व वर्णित किया और उन स्थानों का संरक्षण किया। नारायण भट्ट ने ही ब्रज परिक्रमा और रासलीला का आरंभ किया था। नारायण भट्ट ने ब्रज भक्ति विलास, बृहद ब्रज गुणोत्सव, ब्रह्मोत्सव चंद्रिका, प्रेमांकुर नाटक समेत 52 ग्रंथों का लेखन किया था। उनकी विद्वत्ता के कारण तत्कालीन वैष्णव समाज ने उन्हें ब्रजाचार्य की उपाधि दी थी।