पुस्तकालय विज्ञान के जुड़े विद्वानों का सम्मान
वृंदावन (ब्रज ब्रेकिंग न्यूज़)। ब्रज के साहित्य, पुरातत्व, इतिहास एवं संस्कृति के लिए समर्पित संस्था ब्रज संस्कृति शोध संस्थान के 14वें स्थापना दिवस के अवसर पर ब्रज संस्कृति शोध संस्थान एवं श्री अनारदेवी महिला पॉलीटेक्निक कॉलेज मथुरा के संयुक्त तत्वावधान में पांडुलिपि एवं पुस्तकालयी सामग्री संरक्षण कार्यशाला “पोथी निधि” का आयोजन किया गया।
पांडुलिपि संरक्षण के विषय में बताते हुए ब्रज संस्कृति शोध संस्थान के सचिव लक्ष्मीनारायण तिवारी ने कहा कि पांडुलिपि संरक्षण की कई प्राचीन भारतीय विधियां रही हैं। वृन्दावन में भी लोग पांडुलिपि संरक्षण के लिए प्राकृतिक विधियों को अपनाते आ रहे हैं। अब तो पश्चिमी देश भी प्राकृतिक तरीके से पांडुलिपियों का संरक्षण करने लगे हैं। उन्होंने पांडुलिपि संरक्षण के विभिन्न आयामों की चर्चा करते हुए संरक्षण के चार उपायों पर प्रकाश डाला। कहा कि हम प्रिवेंशन, रिमेडियल, रेस्टोरेशन व डुपलिकेशन विधि से पांडुलिपि को संरक्षित कर सकते हैं। इनमें प्रीवेंटिव तरीका सबसे बेहतर है। जिसमें हम अपनी धरोहर को कीड़ों, दीमकों, धूलों व अन्य क्षरण के कारकों को क्षरण करने से रोकते हैं। हमारे पूर्वज भी इन धरोहरों को इन्हीं तरीकों से संरक्षित करते थे।
संस्थान का परिचय देते हुए प्रकाशन अधिकारी गोपाल शरण शर्मा ने कहा कि विगत 14 वर्षों से ब्रज संस्कृति शोध संस्थान में निःस्वार्थ सेवा भाव से भारतीय संस्कृति की धरोहर कही जाने वाली पुरालिपियों में निबद्ध प्राचीन भारतीय साहित्य को संरक्षित करने एवं दुर्लभ पाण्डुलिपियों को सुरक्षित करने का कार्य किया जा रहा है। संस्थान में लगभग तीन हजार दुर्लभ पाण्डुलिपियां हैं। उन्होंने कहा कि ब्रज संस्कृति शोध संस्थान की स्थापना का उद्देश्य ब्रज की सांस्कृतिक धरोहरों का संरक्षण एवं युवाओं को ब्रज संस्कृति से परिचित करने का रहा है। विगत 14 वर्षों से संस्थान बिना किसी सरकारी अनुदान अथवा दान से निरन्तर कार्य कर रहा है।
कार्यक्रम के संयोजक अनारदेवी महिला पॉलीटेक्निक के व्याख्याता राजेश कुमार सेन ने कहा कि पुस्तकालयाध्यक्षों, सूचना वैज्ञानिकों, पुरालेखपाल, क्यूरेटर, विद्वानों और विभिन्न प्रकार के संस्थानों के लिए एक महत्वपूर्ण विषय है। जब से मनुष्य ने लेखन का ज्ञान प्राप्त किया तब से दुर्लभ दस्तावेजों के संरक्षण की समस्या बनी हुई है। यह बेबीलोनिया, असीरिया, सुमेरिया, चीन या भारत हो सकता है। शास्त्री हमेशा अपने लेखन को भावी पीढ़ी के लिए सुरक्षित रखने के लिए चिंतित रहते थे, चाहे उनके पास जो भी साधन हों। अरस्तू, ओविड और होरेस जैसे विद्वान भी पांडुलिपियों की कीड़ों से सुरक्षा को लेकर चिंतित थे। इसलिए, पांडुलिपियों का संरक्षण दुनिया भर के संरक्षकों के लिए एक गंभीर समस्या है। ताड़ के पत्ते की पांडुलिपियां रिकॉर्ड किए गए ज्ञान के दुर्लभ टुकड़ों के रूप में हमारी सबसे कीमती राष्ट्रीय विरासत हैं।
मानसी उपाध्याय ने कहा कि पांडुलिपियां हमारी साहित्यिक, भाषाई, कलात्मक और सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण का सशक्त माध्यम हैं। ये ज्ञात और अज्ञात का एकमात्र स्रोत हैं। इसलिए भावी पीढ़ी के लिए इन खजानों को बचाने के लिए हर संभव प्रयास किए जाने चाहिए। शोधार्थी यश सोनी ने कहा कि वर्तमान में पांडुलिपियों के सुरक्षित रख-रखाव के लिए आधुनिक रासायनिक कीटनाशकों और प्रतिकारकों की कोई कमी नहीं है। प्रौद्योगिकी के आगमन ने आधुनिक प्रौद्योगिकियों को अपनाकर पांडुलिपियों के संरक्षण की अधिक चिंताओं को भी जन्म दिया है। अभी भी संरक्षण के पारंपरिक तरीके प्रचलन में हैं।
कार्यशाला से पूर्व कार्यक्रम में विभिन्न पुस्तकालयों के अध्यक्ष एवं पुस्तकालय व्याख्याताओं को मुख्य अतिथि जयकिशोर शरण महाराज, संपादक सर्वेश्वर पत्रिका, डॉ.उमेश शर्मा, संस्कृति विशेषज्ञ गीता शोध संस्थान, लक्ष्मीनारायण तिवारी सचिव ब्रज संस्कृति शोध संस्थान एवं डॉ. किरण चौधरी व्याख्याता बीएस कॉलेज ने उनके योगदान के लिए दुपट्टा ओढ़ाकर एवं प्रशस्ति पत्र प्रदान कर सम्मानित किया गया।
सम्मान प्राप्त करने वालों में अखंडानंद पुस्तकालय के अध्यक्ष स्वामी सेवानंद ब्रह्मचारी, अनारदेवी खंडेलवाल पालीटेक्निक पुस्तकालय विज्ञान विभाग के सेवानिवृत्त प्रभारी डॉ. बीडी शर्मा, ब्रज आदर्श इंटर कॉलेज मांट के व्याख्याता वीरेंद्र कुमार, मथुरा जिला पुस्तकालय से सेवानिवृत्त श्याम सुंदर पांडेय एवं बीएसए इंजीनियरिंग कॉलेज के पुस्तकालय अध्यक्ष डॉ. अनिल कुमार शामिल रहे।
इस अवसर पर डॉ. किरण चौधरी, डॉ.यदुनाथ प्रसाद, प्रमोद कुमार, डी. वी.सिंह, यश सोनी, अनु, रेनू, नंदनी, प्रांजलि, मानसी उपाध्याय, स्नेहा गर्ग, कीर्ति आदि उपस्थित थे। कार्यक्रम का संयोजन राजेश कुमार सेन ने एवं संचालन संस्थान के प्रकाशन अधिकारी गोपाल शरण शर्मा ने किया।