बरसाना की लड्डू होली के पीछे की कहानी और भाव पक्ष
योगेंद्र सिंह छौंकर
बरसाना (ब्रज ब्रेकिंग न्यूज)। लठामार रंगीली होली से एक दिन पहले आज रविवार को बरसाना के राधारानी मंदिर में लड्डू होली का आयोजन किया जायेगा। यह लड्डू होली वास्तव में पांडे लीला है जो पिछले डेढ़ दशक से लड्डू होली के नाम से जानी जाने लगी है जबकि पांडे लीला के रूप में यह आयोजन सैकड़ों वर्ष पहले से किया जाता रहा है।
श्यामा श्याम के अनुराग के पर्व लठामार होली का आनंद उठाने को समूचा जग लालायित हो उठता है। गिरधर की होली लीला का रसास्वादन भला कौन न करना चाहेगा। बरसाना और नंदगांव की रंगीली गलियों में रंगों का पर्व मनाने की तैयारियां चरम पर हैं। हुरियारे और हुरियारिनें उत्साह से लबरेज हैं। सबको बस इंतजार है बरसाना से नंदगांव जाने वाले होली के आधिकारिक निमंत्रण और वहां से आने वाली सहर्ष अनुमति का। इसके बाद शुरू हो जायेगी ब्रज की होली जो लड्डुओं से प्रारंभ होकर रंग गुलाल, लाठी ढाल तक अगल अगल तरीकों से खेली जायेगी।
लठामार होली से ठीक एक दिन पहले लाड़लीजी के निज महल से होली का निमंत्रण नँद भवन में भेजा गया। परंपरानुसार वृन्दावन की एक सखी इस निमंत्रण को लेकर अष्टमी के दिन सुबह बरसाना से नंदगांव गई। यह सखी अपने साथ एक मटकी में भरकर गुलाल, प्रसाद, पान-बीड़ा, इत्र फुलेल आदि लेकर गई। इस गुलाल को नंदगांव के घर घर में वितरित किया गया। नँद भवन में इस सखी का जोरदार स्वागत हुआ। यह सखी होली खेलने के लिए राधा रानी का सन्देशा सुनाकर लौट आती है।
बाबा और मैया कान्हा को सखाओं के साथ बरसाना जाकर होली खेलने की अनुमति देने में शाम कर देते हैं। इतनी आसानी से अनुमति कैसे दे दें कान्हा को बरसाने जाने की। एक तो बुढ़ापे की औलाद होने के कारण कान्हा पर प्यार ज्यादा उमड़ता है दूसरे ऊधमी छोरा को वृषभानुजी के द्वार सखाओं के साथ कैसे भेज दें कहीं कुछ उल्टा सीधा कर आया तो उलाहनों का भी डर है। लेकिन कान्हा भी कम चालक नहीं है वो किसी भी तरह बाबा और मैया को पटा कर अनुमति ले ही लेता है। बरसाना से आयी सखी तो कब की लौट गई अब कान्हा की ओर से स्वीकृति का संदेश कौन पहुचाएं।
अगर कान्हा की स्वीकृति बरसाना नहीं पहुंची तो होली की तैयारियां ही नहीं होंगी। ऐसे में कान्हा अपने एक रिश्ते के काका को दूत बना कर बरसाना भेजते हैं। ये दूत पांडा है जो बरसाना आकर राधाजी और उनकी सखियों को सन्देशा देता है कि कान्हा नवमी के दिन बरसाना में होली खेलने आने वाले हैं। इस पांडा की खातिरदारी लड्डुओं से की जाती है, पांडा को इतने लडडू दिए जाते हैं कि वह जी भर खाता और लुटाता है। यह पाण्डे लीला है जो आजकल लड्डू होली कही जाने लगी है।