विवेक दत्त मथुरिया
(भगत सिंह की जयंती पर विशेष)
आज तरक्की की हवाई बातों के बीच देश सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक विषमता को बोझ तले दबा है। उत्पीड़न, अन्याय और शोषण के जमीनी सच को हमारे सियासदां स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं। आज देश में जिस तरह की आर्थिक नीतियों से सामाजिक और राजनीतिक संस्कृति को संरक्षण प्रदान किया जा रहा है, वह पूरी तरह साम्राज्यवाद का ही बदला हुआ नया चेहरा है, जिसको भूमंडलीकरण का नाम दिया गया है। इस भूमंडलीकरण की आर्थिक नीतियों में आर्थिक सुधार के नाम पर बुनियादी हकों से वंचित लोगों के लिए कोई जगह नहीं है। तब ऐसे में शहीद-ए-आजम भगत सिंह के विचार मुखर हो उठते हैं। विडंबना तो इस बात की है कि अपनी फैशनेबल देशभक्ति का प्रदर्शन करते हुए देश का मध्यवर्ग क्रांतिकारियों के प्रति अपनी कृतज्ञता तो दिखाता है, पर उनके विचारों से उसका दूर-दूर तक सरोकार नहीं है।
सवाल इस बात का है कि क्या हमने कभी भगत सिंह के विचार और सरोकारों को समझने की कोशिश की है? शायद नहीं, इन सब बातों के लिए यहां अवकाश किस के पास है। मध्यवर्ग आकांक्षाओं और अपेक्षाओं का वर्ग है न कि आकांक्षाओं और अपेक्षाओं के लिए संघर्ष का। भगत सिंह की दरकार तो है पर पड़ोसी के घर में, अपने घर तो कोई हर्षद मेहता या तेलगी जन्म ले। आज की पीढ़ी शहीद भगत सिंह के बारे में मोटे तौर पर बस इतना ही जानती और समझती है कि भगत सिंह ने देश को ब्रिटिश हुकूमत से मुक्त कराने के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया। हमारी मौजूदा युवा पीढ़ी भगत सिंह के राजनीतिक और सामाजिक विचारों से पूरी तरह अनभिज्ञ है। आजादी के बाद एक सोची समझी राजनीतिक साजिश के तहत भगत सिंह के राजनीतिक विचारों से जनता को दूर रखा गया। क्योंकि भगत सिंह ने आजाद भारत में समाजवादी शासन का स्वप्न अपनी आंखों में पाल रखा था।
महात्मा गांधी को छोड़कर अधिकांश क्रांतिकारी भगत सिंह के इस राजनीतिक विचार से पूर्ण सहमति रखते थे। 23 साल के युवा भगत सिंह की वैचारिक परिपक्वता और प्रतिबद्धता लाजवाब थी। भगत सिह ने क्रांति की सुसंगत परिभाषा गढ़ी। क्रांति की वैचारिक धार को विस्तार देने के लिए अपने जीवन बलिदान को माध्यम बनाया। अमृतसर में 13 अप्रैल 1919 को हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह की सोच पर गहरा प्रभाव डाला था। लाहौर के नेशनल कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर भगत सिंह ने भारत की आजादी के लिये नौजवान भारत सभा की स्थापना की थी। भगत सिंह के जन्म की तारीख को लेकर मतभेद है। कुछ लोग 27 और कुछ लोग 28 सितंबर मानते हैं। सन् 1907 को लायलपुर जिले के बंगा में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है। उनका पैतृक गांव खटकड़ कलां है जो पंजाब, भारत में है। भगत सिंह करतार सिंह सराभा और लाला लाजपत राय से अत्याधिक प्रभावित रहे।
भगत सिंह की चेतना की गहनता को उनके एक लेख ‘मैं नास्तिक क्यों हूं’ से समझा जाा सकता है। यह लेख भगत सिंह ने जेल में रहते हुए लिखा था और यह 27 सितम्बर 1931 को लाहौर के अखबार ‘द पीपुल’ में प्रकाशित हुआ । इस लेख में भगतसिंह ने ईश्वर कि उपस्थिति पर अनेक तर्कपूर्ण सवाल खड़े किये हैं और इस संसार के निर्माण, मनुष्य के जन्म, मनुष्य के मन में ईश्वर की कल्पना के साथ-साथ संसार में मनुष्य की दीनता, उसके शोषण, दुनिया में व्याप्त अराजकता और और वर्गभेद की स्थितियों का भी विश्लेषण किया है। भगत सिंह ने अपने लेख सवाल करते हुए कहा है- ‘मैं पूछता हूं तुम्हारा सर्वशक्तिशाली ईश्वर हर व्यक्ति को क्यों नहीं उस समय रोकता है जब वह कोई पाप या अपराध कर रहा होता है? यह तो वह बहुत आसानी से कर सकता है। उसने क्यों नहीं लड़ाकू राजाओं की लड़ने की उग्रता को समाप्त किया और इस प्रकार विश्वयुद्ध द्वारा मानवता पर पड़ने वाली विपत्तियों से उसे बचाया? उसने अंग्रेजों के मस्तिष्क में भारत को मुक्त कर देने की भावना क्यों नहीं पैदा की? वह क्यों नहीं पूंजीपतियों के हृदय में यह परोपकारी उत्साह भर देता कि वे उत्पादन के साधनों पर अपना व्यक्तिगत संपत्ति का अधिकार त्याग दें और इस प्रकार केवल संपूर्ण श्रमिक समुदाय, वरन समस्त मानव समाज को पूंजीवादी बेड़ियों से मुक्त करें?
आप समाजवाद की व्यावहारिकता पर तर्क करना चाहते हैं। मैं इसे आपके सर्वशक्तिमान पर छोड़ देता हूं कि वह लागू करे। जहां तक सामान्य भलाई की बात है, लोग समाजवाद के गुणों को मानते हैं। वे इसके व्यावहारिक न होने का बहाना लेकर इसका विरोध करते हैं। परमात्मा को आने दो और वह चीज को सही तरीके से कर दे। अंग्रेजों की हुकूमत यहां इसलिये नहीं है कि ईश्वर चाहता है बल्कि इसलिये कि उनके पास ताकत है और हममें उनका विरोध करने की हिम्मत नहीं। वे हमको अपने प्रभुत्व में ईश्वर की मदद से नहीं रखे हैं, बल्कि बंदूकों, राइफलों, बम और गोलियों, पुलिस और सेना के सहारे। यह हमारी उदासीनता है कि वे समाज के विरुद्ध सबसे निन्दनीय अपराध ‘एक राष्ट्र का दूसरे राष्ट्र द्वारा अत्याचार पूर्ण शोषण’ सफलतापूर्वक कर रहे हैं। कहां है ईश्वर? क्या वह मनुष्य जाति के इन कष्टों का मजा ले रहा है?’ भगत सिंह के इन विचारों में मानवता की श्रेष्ठता की स्थापना की अवधारणा को समझा जा सकता है।